गंगा नहर बनाने के लिए की गई थी थॉमसन कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग की स्थापना


हरिद्वार से कानपुर तक गंगा नहर के काम को पूरा करने के लिए विशेष रूप से बनाया गया था थॉमसन कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग जो आगे चलकर देश का सातवां ( IIT )बना

इस कॉलेज में पढ़े पहले बैच के सभी ब्रिटिश इंजीनियर्स ने गंगा नहर के निर्माण में योगदान दिया था । सोनाली नदी मे बना एक्वाडक्ट भारत का “ पहला एक्वाडक्ट “ था ।

रुड़की ।( मौ.गुलबहार गौरी) साल 1837 की बात है। उस साल उत्तर भारत में मानसून समय से नहीं आया। जिसके चलते गंगा यमुना दोनों नदियों में पानी कम हो गया। ऐसा सूखा पड़ा कि 8 लाख जानों को लील गया। लोग घरबार छोड़कर जाने लगे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासन काल में ऐसे अकाल पहली बार नहीं देख रही थी। लोग अपनी जमीनें छोड़ छोड़कर भाग जाया करते।
तब प्रोबी थामस कॉटली के लंबे संघर्ष और प्रयास के चलते ही साल 1854 में ये गंगा पर गंगा-नहर बनकर तैयार हुई। 8 अप्रैल, 1854 को इसे पहली बार खोला गया।
तब जॉर्ज ऑकलैंड भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे। उन्होंने अपने माहततों को दोआब के अकाल की समस्या का हल ढूंढने का निर्देश दिया।
एक तरीका था, जिस पर सालों से विचार चल रहा था। गंगा पर नहर का निर्माण करना, ताकि कृत्रिम तरीके से पूरे उत्तर भारत में पानी पहुंचाया जा सके। एक ब्रिटिश इंजीनीयर प्रोबी थॉमस कॉटली को इस काम के लिए सर्वे का जिम्मा मिला। 1839 में कॉटली ने हरिद्वार से सर्वे की शुरुआत की। 6 महीनों तक जंगली रास्तों से चलते हुए गंगा के किनारे सर्वे का काम पूरा किया। जिसके अंत में उन्होंने हरिद्वार से कानपुर तक एक 500 किलोमीटर लम्बे कैनाल का प्रस्ताव पेश किया।
शुरुआत में कॉटली के प्लान को हाथों हाथ लेते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स ने उन्हें फंड भी जारी कर दिए।
जार्ज आकलैंड के बाद हेनरी हार्डिंग नए गवर्नर जनरल बने। काटली ने हार्डिन को और अधिक गहराई से सर्वे को समझाया, प्रोजेक्ट का दौरा कराया और इसकी मंजूरी ली। हार्डिंग के बाद लार्ड डलहौजी ने भी इस प्रोजेक्ट का पूरा समर्थन किया और बजट को मंजूरी देते रहे। इस तरह कॉटली के लिए आर्थिक समस्याएं तो दूर हो गईं। लेकिन अभी बड़ी समस्या बाकी थी।
भारत का अगड़ा ब्राह्मण समाज इस पूरे प्रोजेक्ट के खिलाफ था उसने पूरे भारतीय समाज को इसके खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया परिणामस्वरूप भारत का धार्मिक वातावरण तब इस प्रोजेक्ट खिलाफ हो चुका था।
नहर में पानी देने के लिए एक बैराज बनाए जाने की जरुरत थी। और ये बैराज बनना था, हरिद्वार में हर की पैड़ी के नजदीक भीमगोड़ा नाम की जगह पर। इस स्थान पर मान्यता है कि महाभारत काल में भीम ने अपना पैर मारा था जिससे चट्टान में पानी फूट निकला था। यहीं बैराज बनाने की सबसे मुफीद जगह थी ताकि पानी को इकठ्ठा कर नियंत्रित तरीके से नहर में भेजा जा सके। लेकिन हरिद्वार के पण्डे पुजारियों ने इस काम में अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया। हर की पैड़ी, हिन्दू धर्म की आस्था में बड़ा स्थान रखता है। यही वो जगह है जहां कुम्भ के दौरान लाखों लोग स्नान के लिए आते हैं। तब भी आते थे। ऐसे में पंडों का कहना था कि देवी गंगा पर बांध बनाना बहुत बड़ा अपशकुन होगा।
कॉटली का उनसे भिड़ना उनको सहन नहीं हुआ। वर्षों तक लोग अकाल और भूख से मरते रहे। थामस काटली विरोधियों के आगे नाक रगड़ते रहे।
थक-हारकर उस अंग्रेज़ ने जिस सलीके से धार्मिक भावनाओं को संभालते हुए अपना काम किया, उसकी नजीर मिलना दुर्लभ है।
कॉटली ने प्रस्ताव दिया कि वो बांध में एक गैप छोड़ देंगे जिससे गंगा निर्बाध रूप से हर की पैड़ी तक बह सकेगी। इतना ही नहीं पंडों को खुश करे के लिए उन्होंने हर की पैड़ी पर नए घाट बनाने की पेशकश की। पंडे पुजारियों ने बहुत मुश्किल से उसके प्रस्ताव को स्वीकार किया।
जब भीमगोड़ा में बैराज बनाने की शुरुआत हुई, कॉटली ने गणेश पूजा करवाकर इस काम की शुरुआत की।
नहर बनाने में आ रही धार्मिक सामजिक चुनौतियों का इस प्रकार से इस अंग्रेज इंजिनियर ने सामना किया और समाधान हुआ।
हरिद्वार से रुड़की तक नहर का काम, बिना ज्यादा रुकावटों के हो गया। लेकिन रुड़की में सोलानी नदी रास्ते में पड़ती थी, जिसका बहाव बारबार नहर को काट डालता था। इसके लिए कॉटली ने एक नया रास्ता खोजा। उन्होंने सोलानी के ऊपर लगभग आधे km तक aqua duct का निर्माण करवाया (Solani Aqueduct)। यानी इस आधे km में नहर नदी के ऊपर बहती हुई जाती है। इंजीनियरिंग का ये अदभुत नमूना बनाने के लिए दो साल का वक्त लगा और इस काम को पूरा करने के लिए विशेष रूप से रूड़की में *एक शिक्षा संस्थान की शुरुआत* हुई, थॉमसन कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग जो आगे चलकर देश का सातवां IIT (IIT Roorkee) बना। इस कॉलेज में पढ़े *पहले* ब्रिटिश officers ने नहर के निर्माण में योगदान दिया।
सोलानी में बना एक्वाडक्ट भारत का *पहला* एक्वाडक्ट था.
इस एक्वाडक्ट के चलते भारत को अपना *पहला* स्टीम इंजन भी हासिल हुआ। दरअसल प्रोबी थॉमस कॉटली ने ईटें बनाने के लिए जिन भट्टों का निर्माण करवाया था। उनमें एक खास प्रकार की मिट्टी लगती थी। ये मिट्टी रुड़की के पास एक जगह पीरान कलियर से लाई जाती थी। शुरुआत में मजदूर मिट्टी की ढुलाई करते थे। जिसके चलते काम धीमा चल रहा था। 1851 में कॉटली ने तय किया कि इस काम के लिए एक रेल पटरी बिछाई जाएगी। इस तरह 22 दिसंबर 1851 को, पीरान कलियर से रुड़की तक, भारत की *पहली* मालवाहक रेल चलाई गई। *पहली* पैसेंजर ट्रेन इसके दो साल बाद यानी 1853 में बोरी-बन्दर से थाने के बीच चली थी।
कॉटली के प्रयासों के चलते साल 1854 में ये नहर बनकर तैयार हुई. 8 अप्रैल 1854 को इसे *पहली बार* खोला गया. तब इसकी कुल लम्बाई 560 किलोमीटर थी, वहीं इससे 492 km की ब्रांचेज, और 4,800 km की छोटी नहरें निकाली गई थीं जिनसे 5,000 गांवों तक पानी पहुंचाया गया। तब दुनिया के जाने माने engineers इस नहर को देखने आए थे। स्टेट्समैन अखबार के एडिटर इयान स्टोन ने इस नहर को देखकर लिखा था, “दुनिया में इतनी बड़ी नहर बनाने की ये पहली सफल कोशिश है ,ये नहर इटली और मिश्र की नहरों को मिलाकर भी उनसे पांच गुना ज्यादा बड़ी, और अमेरिका के पेंसिल्वेनिया कैनाल से एक तिहाई से भी ज्यादा लम्बी है ।

साभार :- हिंदी टाइम्स मीडिया ग्रुप

 


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