पंजाब में बाढ़ पीड़ितों की ख़िदमत-ए-खल्क़ ने बढ़ाया मुसलमानों का वकार,मुस्लिमों पर उँगली उठाने वालो को किया बेज़ुबान
शाही इमाम मौलाना उस्मान लुधियानवी ने पंजाब में मुसलमानों की बाढ़ पीड़ितों की इस मदद को हुज़ूर की सून्नत पर बेहतरीन अमल बताया
14 सितम्बर 25-रिपोर्टर डेस्क
( मौ. गुलबहार गौरी )
पंजाब की सरज़मीं इस वक़्त बाढ़ की सख़्त मार झेल रही है। गांव दर गांव, खेत दर खेत पानी में डूबे हुए हैं। लाखों लोग बेघर और बेसहारा हो गए हैं। इस क़ौमी आफ़त ने जहाँ इंसानियत को झंझोड़ कर रख दिया है, वहीं मुसलमानों ने अपने हौसला-ए-जवां और जज़्बा-ए-ख़िदमत से ऐसी मिसाल क़ायम की है, जिसने उनके वजूद को नई पहचान और वक़ार बख़्शा है।
बाढ़ पीड़ितों की मदद में सबसे आगे मुसलमान
पंजाब के लुधियाना, पटियाला, गुरदासपुर, मालवा और दोआबा के इलाक़ों में मुसलमान नौजवानों ने नाव और ट्रैक्टर लेकर राहत कारवां चलाया। किसी ने बुज़ुर्गों को कंधे पर उठाया, किसी ने औरतों और बच्चों को सुरक्षित जगह पहुँचाया। मस्जिदें राहत कैंप में तब्दील हुईं, मदरसे बेघर लोगों के लिए आसरा बने। नमाज़-ए-जुमा के बाद इमामों ने एलान किया—“आज हमारी सबसे बड़ी इबादत है इंसानियत की ख़िदमत।”
ग़ौरतलब है कि मुसलमानों पर अक्सर उँगली उठाई जाती रही है, मगर इस बाढ़ ने तमाम आलोचकों को बे-ज़ुबान कर दिया। हर तरफ़ यह पैग़ाम गूंजने लगा कि “पंजाब को खड़ा करने में मुसलमानों का बड़ा हाथ है।”
शाही इमाम मौलाना उस्मान लुधियानवी का बयान
लुधियाना की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना उस्मान लुधियानवी ने मुसलमानों की इस राहत मुहिम को सीधा-सीधा हुज़ूर-ए-अक़्दस ﷺ की सून्नत पर अमल बताया। उन्होंने कहा—
“रसूलुल्लाह ﷺ ने हर दौर में इंसानियत की मदद को सबसे बड़ी नेकी क़रार दिया। पंजाब के मुसलमानों ने उसी सून्नत को ज़िंदा कर दिखाया है। बाढ़ में फँसे मज़लूमों की मदद करना, भूखों को खाना देना, बेघर को आसरा देना—ये सब अल्लाह की नज़र में सबसे अफ़ज़ल अमल है।”
उन्होंने यह भी कहा कि “जो लोग मुसलमानों पर इल्ज़ामात लगाकर उन्हें शक की निगाह से देखते थे, आज वही लोग देख रहे हैं कि क़ौम-ए-मुस्लिम ने इंसानियत का झंडा बुलंद किया है। ये हमारी दीनदाराना ज़िम्मेदारी थी और हम इसे क़यामत तक निभाते रहेंगे।”
ख़्वातीन और नौजवानों की बे-मिसाल क़ुर्बानी
इस बाढ़ राहत में मुस्लिम ख़्वातीन ने खाना पकाकर हज़ारों पैकेट बांटे। लड़कियाँ मेडिकल कैंपों में दवाइयाँ और सैनिटरी किट्स पहुँचाती रहीं। वहीं, नौजवान सोशल मीडिया पर “राहत-ए-इंसानियत” के नाम से मुहिम चलाकर लाखों रुपये की इमदाद इकट्ठा करने में सफल हुए।
एक नौजवान राहतकर्मी ने कहा—“हमारे नबी ﷺ ने फ़रमाया कि सबसे अफ़ज़ल इंसान वही है जो दूसरे इंसान के काम आए। हम इसी हदीस को अपना शऊर और अपना मिशन बनाए हुए हैं।”
सियासी हदबंदियाँ टूटीं
पंजाब की बाढ़ ने यह भी दिखा दिया कि इंसानियत की सेवा मज़हबी या सियासी सरहदों से ऊपर है। मुसलमानों ने न सिर्फ़ अपने भाईयों बल्कि हिंदू, सिख और ईसाई परिवारों को भी पनाह दी। कई जगहों पर सिख गुरुद्वारों और मुस्लिम मस्जिदों ने मिलकर राहत बाँटी। यह नज़ारा पंजाब की गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीता-जागता सबूत बना।
वक़्त-ए-हाज़िर में जब मुसलमानों पर तरह-तरह के सवाल उठाए जाते रहे, पंजाब की इस बाढ़ ने आलोचकों को जवाब दे दिया। राहत कैंप में मौजूद एक गैर-मुस्लिम बुज़ुर्ग ने कहा—“अगर आज मेरी ज़िंदगी सलामत है तो मुसलमान भाइयों की वजह से।” यह अल्फ़ाज़ इस बात का सबूत हैं कि मुसलमानों का किरदार ही उनका असली पैग़ाम है।
वक़ार और इंसानियत का पैग़ाम
आज पंजाब की बाढ़ ने मुसलमानों के वक़ार को न सिर्फ़ बढ़ाया, बल्कि यह पैग़ाम भी दिया कि इंसानियत से बढ़कर कोई मज़हब नहीं। मुसलमानों ने अपने सब्र, अपने हौसले और अपने ईमानी जज़्बे से दिखा दिया कि वे हर मुसीबत में इंसानियत के साथ खड़े हैं।
शाही इमाम मौलाना उस्मान लुधियानवी की ये बातें इस सच्चाई पर मुहर हैं कि मुसलमानों का यह किरदार सिर्फ़ राहत का काम नहीं, बल्कि हुज़ूर ﷺ की सुन्नत पर अमल है।
आज पंजाब के हर कोने में यही दुआ की जा रही है—
“ऐ अल्लाह! इस आफ़त को रहमत में बदल दे, हमारे गुनाहों को माफ़ कर और हमें हमेशा इंसानियत की ख़िदमत करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा।”
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