हरिद्वार की आवाज़-एक उत्तराखंड, एक पहचान,न पहाड़ अलग,न मैदान बेगाना


हरिद्वार की आवाज़-एक उत्तराखंड, एक पहचान “न पहाड़ अलग, “न मैदान बेगाना” मोहब्बत और एकता ही असली ताक़त,वरना यह खाई कभी नहीं भरेगी”

उमेश कुमार: सियासत नहीं सेवा है पहचान, उत्तराखंड विधानसभा में नहीं कोई जो समाजसेवा में कर सके मुक़ाबला”

हरिद्वार, 6 नवंबर 2025
(मौ.गुलबहार गौरी)
हरिद्वार की सरज़मीन से एक बार फिर एक गूंज उठी है — “पहाड़ और मैदान की यह लड़ाई अब थमनी चाहिए।” आमजन का कहना है कि अगर इस जंग पर विराम नहीं लगाया गया तो यह खाई इतनी गहरी हो जाएगी कि इसे पाटना नामुमकिन हो जाएगा। सवाल उठता है — जब पहाड़ वाले मैदान वालों से इतनी नफ़रत करते हैं, तो फिर हर चुनाव में हरिद्वार का दरवाज़ा क्यों खटखटाते हैं?

हरिद्वार के लोगों की जुबान पर अब एक ही बात है कि “हमने तो हमेशा अपनापन दिया, लेकिन बदले में हमें ताने मिले, इल्ज़ाम मिले और अपमान भी।” जनता कहती है कि हरीश रावत हों, त्रिवेंद्र सिंह रावत हों, रमेश पोखरियाल निशंक हों या कोई और बड़ा नेता — इन सबको चुनाव के वक्त तो पहाड़ वालों ने हरिद्वार भेज दिया, मगर जब ये लोग मुख्यमंत्री या सांसद बने, तब इन्हें पहाड़ी बताने में सबसे आगे वही लोग रहे।

हरिद्वार के लोग कहते हैं कि हमने तो हमेशा बड़े दिल का सबूत दिया — इन नेताओं को अपने सिर पर बिठाया, विधानसभा से लेकर संसद और यहां तक कि कैबिनेट तक पहुंचाया। मगर अब वही लोग मैदान वालों को “पहाड़वाद” और “मैदानीवाद” का पाठ पढ़ा रहे हैं, जैसे मैदान के लोग किसी दूसरी दुनिया के हों।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब-जब उत्तराखंड की राजनीति में हरिद्वार ने किसी को मौका दिया, तब-तब हरिद्वार के लोगों ने धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर वोट दिया। उन्होंने कभी किसी को पहाड़ी या मैदानी कहकर नहीं परखा। मगर अब बदले में उन्हें तिरस्कार, ताने और भेदभाव मिल रहा है। यह वही हरिद्वार है जिसने उत्तराखंड को पहचान दिलाई, जिसने गंगा की गोद में बैठकर इस प्रदेश की नींव मजबूत की, और आज उसी हरिद्वार को “गैर-उत्तराखंडी” कहकर नीचा दिखाया जा रहा है।

देहरादून के विधायक विनोद चमोली का खानपुर विधायक उमेश कुमार से उलझना लोगों को नागवार गुज़रा है। आम जनता कहती है कि शायद विनोद चमोली भूल गए कि उमेश कुमार वही शख्स हैं जिन्होंने कई बार सत्ता की आंखों में आंखें डालकर सच्चाई का आईना दिखाया। उमेश कुमार ने राजनीति को अपनी सेवा का ज़रिया बनाया, ना कि सियासत का हथियार।

उमेश कुमार ने अपने निजी संसाधनों से समाज सेवा की मिसाल कायम की — पहाड़ से लेकर मैदान तक, टॉपर बच्चों को सम्मानित किया, बच्चों को मुंबई तक हवाई सफ़र कराया, गरीब परिवारों की बेटियों की शादी कराई और 700 बच्चों को मिडडे मील के बर्तन किट निजी खर्च से उपलब्ध कराई गई सैकड़ों सामाजिक कार्य निरंतर जारी रखे हुए हैं,उनकी कोशिश रही कि कोई भी फरियादी चाहे उत्तराखंड का हो या उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा या दिल्ली का — वो निराश न लौटे।
लोग पूछते हैं — आज 70 विधायकों में कौन ऐसा है जो समाज सेवा में उमेश कुमार का मुक़ाबला कर सके?

उधर भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय का सदन में दिया बयान राजनीतिक माहौल में आग लगाने वाला साबित हुआ। उन्होंने लक्सर विधायक मोहम्मद शहज़ाद से कहा — “टिहरी का बांध तोड़ दो या हम तुम्हारा पानी रोक देंगे, तुम हमारे रहमो-करम पर जिंदा हो।”
इस बयान ने न सिर्फ़ सदन को हिला दिया बल्कि आम जनता को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या अब राजनीति इतनी नीचे गिर चुकी है कि पानी और ज़िंदगी भी क्षेत्रवाद की भेंट चढ़ जाएगी?

देहरादून के विधायक विनोद चमोली का ज्वालापुर विधायक इंजीनियर रवि बहादुर को “गैर-उत्तराखंडी” कह देना तो जैसे हद से गुजर गया। जनता कहती है कि आखिर कौन तय करेगा कि कौन उत्तराखंडी है और कौन नहीं? क्या सिर्फ़ पहाड़ में पैदा होना ही उत्तराखंडी होने की पहचान है? या फिर गंगा किनारे जन्म लेकर भी कोई इस ज़मीन का हक़दार नहीं?

हरिद्वार के लोगों का कहना है — “इस मुल्क को आज़ाद कराने में और इस प्रदेश को बनाने में हमारे बड़ों का खून-पसीना शामिल है। आज वही लोग हमें हमारी पहचान सिखाने निकले हैं जो कभी इस मिट्टी की खुशबू को पहचान भी नहीं पाए।”
लोगों का कहना है कि अगर भाजपा के कुछ नेताओं को हरिद्वार से इतनी ही परेशानी है, तो बेहतर होगा कि हरिद्वार को उत्तराखंड से अलग कर दिया जाए — “फिर देखेंगे कि बिना हरिद्वार के उत्तराखंड की पहचान कहाँ टिकती है।”

हरिद्वार की फिज़ाओं में अब एक ही पैग़ाम गूंज रहा है — “हमने सर उठाकर जनसेवा की है, मगर सिर झुकाकर गुलामी कभी नहीं करेंगे।”
जनता का कहना है कि पहाड़ और मैदान का रिश्ता मोहब्बत से चले तो इस प्रदेश की तामीर होगी, लेकिन अगर नफ़रत ने बीच में दीवार खड़ी कर दी तो यह दीवार दोनों तरफ़ की रौशनी को निगल जाएगी।

हरिद्वार की गलियों में अब यह चर्चा ज़ोरों पर है कि सियासत को जज़्बात से ऊपर उठना होगा। पहाड़ और मैदान की यह जंग किसी की जीत नहीं लाएगी, बल्कि इस प्रदेश की बुनियाद को ही कमजोर कर देगी।
लोगों का कहना है — “हम उत्तराखंड के हैं, लेकिन सबसे पहले हिंदुस्तानी हैं। हम एक हैं, हमें कोई बांट नहीं सकता।”

हरिद्वार की आवाज़ अब सिर्फ़ इल्ज़ाम नहीं, बल्कि एक आगाज़ है — मोहब्बत का, बराबरी का और इज़्ज़त का।


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