कांग्रेस 1977 की इमर्जेंसी के 3 साल बाद भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी-जनमंत्र


1975 की इमरजेंसी के 3 साल बाद 1980 में कांग्रेस ने पाई भारी बहुमत की सत्ता, पर भाजपा हारी तो दशकों तक वापसी मुश्किल –जनमत

 

नई दिल्ली, 25 जून 2025: आज देश उस ऐतिहासिक दिन की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है, जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत लगाए गए इस आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय कहा जाता है। उस दौर में नागरिक अधिकारों का हनन, मीडिया पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और संस्थानों का दमन हुआ।

लेकिन उस ‘घोषित’ इमरजेंसी के तीन साल बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई, और जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। फिर 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और 353 सीटें जीतकर पुनः सत्ता में लौट आई। 1984 में तो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को अभूतपूर्व जनादेश मिला और 414 सीटों के साथ सबसे बड़ी जीत हासिल की।

आज, 50 साल बाद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बयान दिया है कि पिछले 12 वर्षों से देश अघोषित आपातकाल की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया — सभी पर सत्ता का दबाव है और वे सरकार के इशारे पर काम करने को मजबूर हैं। इस बयान ने एक नई बहस छेड़ दी है कि कौन-सी इमरजेंसी ज़्यादा ख़तरनाक थी — वह घोषित आपातकाल जो तीन साल में समाप्त हो गया या यह अघोषित आपातकाल, जिसका अंत दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा।

सत्ता का केंद्रीकरण और संस्थानों पर नियंत्रण

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा दौर में सत्ता का असाधारण केंद्रीकरण हो चुका है। सारे बड़े फैसले एक सीमित नेतृत्व समूह द्वारा लिए जा रहे हैं। संसद में विपक्ष की आवाज को दबाने, जनहित के सवालों से बचने और आलोचकों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति बढ़ी है।

जनता के बीच यह धारणा भी बनती जा रही है कि देश में लोकतंत्र केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकार समर्थक रुख अपनाए हुए है, जबकि स्वतंत्र आवाज़ों को या तो दबा दिया जाता है या उन्हें देशविरोधी ठहराने की कोशिश की जाती है।

“कांग्रेस तो लौटी थी, भाजपा शायद न लौटे”

राजनीतिक चर्चाओं में अब एक नया सवाल उभर कर सामने आ रहा है — क्या मौजूदा सत्ता परिवर्तन की स्थिति में भाजपा भी कांग्रेस की तरह 3 साल में वापसी कर सकेगी? कई नागरिकों और विश्लेषकों का मानना है कि अगर भाजपा एक बार सत्ता से बाहर हुई, तो उसकी वापसी दशकों तक संभव नहीं हो सकेगी।

इसका कारण बताया जा रहा है पार्टी की कार्यशैली, संस्थागत ढांचे पर अत्यधिक नियंत्रण, और वैचारिक कट्टरता। भाजपा ने अपने राजनीतिक आधार को जिस आक्रामक राष्ट्रवाद, धार्मिक ध्रुवीकरण और सरकारी तंत्र पर पकड़ के सहारे खड़ा किया है, उसकी हार केवल चुनावी नहीं बल्कि वैचारिक पराजय भी मानी जाएगी।

विपक्षी एकता और जनआक्रोश

महंगाई, बेरोज़गारी, संस्थानों की स्वायत्तता पर हमला, किसानों और युवाओं की अनदेखी जैसे मुद्दों पर अब जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा है। विपक्षी दल धीरे-धीरे एक मंच पर आ रहे हैं और 2024 के चुनाव के बाद से राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के संकेत दिखाई देने लगे हैं।

कांग्रेस, समाजवादी दल, क्षेत्रीय पार्टियाँ और वाम दल सब यह तर्क दे रहे हैं कि देश एक अघोषित आपातकाल से गुजर रहा है। यदि जनता ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया तो वह कांग्रेस की तरह जल्दी वापसी नहीं कर सकेगी क्योंकि उसकी राजनीति पर ‘एक चेहरे’ की अत्यधिक निर्भरता है।

निष्कर्ष

आज जब हम आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर इतिहास को याद कर रहे हैं, तब यह सवाल हर नागरिक के सामने है कि लोकतंत्र के लिए ज्यादा खतरनाक क्या है — वह इमरजेंसी जिसे घोषित किया गया और तीन साल में समाप्त हुआ, या यह दौर, जिसमें संवैधानिक संस्थाएं मौन हैं, लोकतांत्रिक अधिकार सिकुड़ते जा रहे हैं और सत्ता पर सवाल पूछना जोखिम बन गया है।

कांग्रेस की वापसी की तरह भाजपा की वापसी को लेकर भी चर्चाएं हो रही हैं। फर्क इतना है कि कांग्रेस को जनता ने तीन साल बाद माफ कर दिया था, लेकिन आज की परिस्थिति में भाजपा के लिए ऐसी माफी की संभावना दूर की कौड़ी नज़र आती है। देश की जनता बेहतर जानती है कि वर्तमान अघोषित आपातकाल कहीं अधिक गहरा, विस्तृत और दीर्घकालिक खतरा बन चुका है।


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