उत्तराखंड में राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों पर सभी तरह की कार्यवाही पर अग्रिम आदेशों तक लगाई रोक
देहरादून, 24 जून 2025 — ( मौ. गुलबहार गौरी) उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर फिलहाल विराम लग गया है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के ताजा आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव संबंधी समस्त कार्यवाहियों को अग्रिम आदेशों तक स्थगित करने की घोषणा कर दी है। इसके चलते नामांकन, जांच, मतदान और मतगणना की प्रक्रिया अब अगले आदेश तक नहीं होगी।
इस निर्णय से राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय निकायों के चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जहां कुछ लोगों ने अदालत के आदेश को न्यायपूर्ण बताया है, वहीं कई लोगों का मानना है कि यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है।
अदालत ने आरक्षण नीति पर उठाए सवाल
राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की नई व्यवस्था को लेकर अधिसूचना जारी की थी, लेकिन उसे राजकीय गजट में प्रकाशित नहीं किया गया। इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें कहा गया कि आरक्षण की प्रक्रिया बिना अधिसूचना के लागू करना असंवैधानिक और अवैध है।
याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक आरक्षण की वैध अधिसूचना जारी नहीं होती, तब तक पंचायत चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। कोर्ट ने निर्वाचन प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाते हुए राज्य सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
राज्य निर्वाचन आयोग का आदेश
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग ने तत्काल प्रभाव से पंचायत चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। आयोग ने जिलाधिकारियों और सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे चुनाव संबंधी किसी भी प्रकार की गतिविधि न करें।
इसके साथ ही आचार संहिता को भी फिलहाल के लिए निलंबित कर दिया गया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि आगे की कार्रवाई कोर्ट के अगले आदेशों के बाद ही की जाएगी।
क्या था प्रस्तावित चुनाव कार्यक्रम?
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पूर्व में जारी कार्यक्रम के अनुसार पंचायत चुनाव दो चरणों में आयोजित किए जाने थे।
पहला चरण 10 जुलाई और दूसरा चरण 15 जुलाई को होना प्रस्तावित था।
नामांकन प्रक्रिया 25 जून से 28 जून के बीच चलनी थी, जबकि जांच और प्रतीक आवंटन की प्रक्रिया 1 जुलाई तक पूरी की जानी थी।
19 जुलाई को मतगणना की तिथि तय की गई थी।
अब यह पूरा कार्यक्रम अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं में यह आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों में आरक्षण तय करने के लिए जो रोटेशन सिस्टम अपनाया है, वह पहले से आरक्षित रही सीटों को फिर से आरक्षित करके कई योग्य अभ्यर्थियों को चुनाव से बाहर कर देता है।
कुछ सीटों पर लगातार तीन बार से ज्यादा आरक्षण लागू करने पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 243D और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस निर्णय के बाद राज्य की राजनीतिक हलचलों में तेज़ी आ गई है।
विपक्षी दलों ने सरकार की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सरकार की जल्दबाज़ी और कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी के कारण पंचायत चुनाव टल गए हैं।
वहीं, सरकार का कहना है कि वह अदालत के आदेश का सम्मान करती है और यथाशीघ्र सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी।
अगली सुनवाई पर टिकी निगाहें
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई की तारीख 25 जून निर्धारित की गई है। तब तक कोई भी चुनावी प्रक्रिया नहीं की जा सकेगी।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया एक बार फिर कानूनी पेंच में फंस गई है। हाईकोर्ट के आदेश और निर्वाचन आयोग की कार्रवाई से यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक आरक्षण नीति को लेकर पूरी पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक राज्य में कोई भी पंचायत चुनाव संभव नहीं है।
अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट की अगली सुनवाई और राज्य सरकार के जवाब पर टिकी हैं। अगर सरकार संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में असफल रहती है, तो चुनाव में लंबी देरी हो सकती है। वहीं, अदालत की संतुष्टि के बाद ही निर्वाचन आयोग आगे की प्रक्रिया पर विचार करेगा।