सहकारिता चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, हाईकोर्ट के स्थगन आदेश पर लगाई रोक, तीन जिलों की जांच के लिए समिति गठित
देहरादून, ( रिपोर्ट-मौ. गुलबहार गौरी )
उत्तराखंड की सहकारी समितियों के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट के चुनाव स्थगन आदेश को चुनौती देने के बाद शीर्ष अदालत ने उस आदेश पर स्टे लगा दिया है। इससे राज्य में प्राथमिक, जिला और राज्य स्तरीय सहकारी संघों के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, फिलहाल नए सिरे से चुनाव नहीं होंगे, और निर्विरोध व निर्वाचित सदस्यों को ही विजयी माना जाएगा।
बता दें कि राज्य में कुल 671 बहुउद्देशीय सहकारी समितियों के चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी। 18 फरवरी को इनमें से 450 समितियों में निर्विरोध चुनाव संपन्न हो गए थे। शेष 221 समितियों में चुनाव हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के चलते अटक गए थे, जिससे जिला सहकारी बैंक, फेडरेशन और राज्य स्तरीय संस्थाओं के चुनाव भी प्रभावित हुए। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन संस्थाओं में चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी।
इस संबंध में सहकारिता सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में सहकारिता विभाग न्याय विभाग से परामर्श ले रहा है। उन्होंने कहा कि जल्द ही 24 फरवरी को निर्वाचित और निर्विरोध विजयी प्रत्याशियों से बोर्ड गठित कर आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
पूर्व डीसीबी टिहरी अध्यक्ष सुभाष रमोला ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सहकारिता और महिलाओं की जीत बताया। उन्होंने कहा कि महिलाएं इस फैसले से आगे बढ़ेंगी और आत्मनिर्भर बनेंगी।
इस बीच, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून में चुनाव स्थगित करने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के अध्यक्ष हंसा दत्त पांडे ने आदेश जारी कर जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित की है। आदेश में कहा गया कि हरिद्वार और देहरादून में सक्षम स्तर को सूचित किए बिना चुनाव स्थगित किए गए, जबकि ऊधमसिंह नगर में चुनाव शुरू ही नहीं किए गए, जिसकी कई शिकायतें मिलीं। अब इन तीन जिलों में निर्वाचन प्रक्रिया स्थगन की जांच की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जहां चुनाव प्रक्रिया को गति मिलने की उम्मीद है, वहीं तीन जिलों में हुई अनियमितताओं की जांच सहकारी प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।