उत्तराखंड गठन के 24 साल बाद भी टूटता नज़र नहीं आ रहा ये मिथक, मेयर की कुर्सी तक पहुंचता रहा है निर्दलीय प्रत्याशी
उत्तराखंड गठन से आज तक 24 वर्षों मे राष्ट्रीय पार्टियों ने जातीय समीकरणों के आधार पर थोपे हुए प्रत्याशियों को रुड़की वासियों ने किया नज़रअंदाज़, होनहार निर्दलीय प्रत्याशियों को सिर आँखों पर बैठाया
रुड़की । ( मौ. गुलबहार गौरी) इतिहास गवाह हैं रुड़की की जनता किसी भी राजनीतिक दल पर नहीं बल्कि सबका विकास करने वाले प्रत्याशी को ही चुनती है लेकिन अफ़सोस उत्तराखंड गठन के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने ऐसा प्रत्याशी रुड़की को नहीं दिया जिसे जनता अपना सेवक मानकर जिताने का प्रयास करे
लोगों का कहना है कि पिछले कार्यकाल में यशपाल राणा निर्दलीय जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन पार्टी दबाव को दरकिनार करते हुए, विकास कांग्रेस मेयर बनकर नहीं बल्कि निर्दलीय बनकर ही किया वहीं गौरव गोयल निर्दलीय जीते और भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा मेयर बनकर ही कुछ समय काम किया लेकिन पार्टी दबाव के बोझ को ज़्यादा समय तक सह नहीं पाये और बीच में ही रुड़की वासियों को बेसहारा छोड़कर निकल लिए
स्थानीय नागरिक चन्दन शर्मा जी का कहना हैं 2019 मे मेयर ही नहीं पार्षदों मे भी 40 मे से 20 पार्षद निर्दलीय जीते थे लेकिन बाद में कुछ पार्षद भाजपा में शामिल हो गये थे क्योंकि शिक्षा नगरी रुड़की की जनता नगर निगम चुनाव को शायद पार्टी लेवल और जातीय समीकरण से अलग मानती है क्योंकि इससे ना तो प्रदेश सरकार बनती है और ना ही केंद्र सरकार पर कोई असर होता हैं
उत्तराखंड गठन के बाद पहला चुनाव वर्ष 2003 में हुआ। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश कौशिक (ब्राह्मण ) ने भाजपा के प्रमोद गोयल(बनिया) व कांग्रेस के राजेश गर्ग को शिकस्त दी , जितने के बाद कौशिक कांग्रेस में शामिल हो गए ।
इसके बाद 2008 में हुए निकाय चुनाव में भाजपा के अश्विनी कौशिक (ब्राह्मण ) कांग्रेस के दिनेश कौशिक को निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप बत्रा (पंजाबी) ने जीत हासिल कर निर्दलीय की ताक़त को राष्ट्रीय पार्टियों के सामने साबित किया।हालाँकि बाद में प्रदीप बत्रा ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया ।
2013 में हुए निकाय चुनाव में भाजपा से महेन्द्र काला (पंजाबी) , कांग्रेस के राम अग्रवाल को निर्दलीय प्रत्याशी यशपाल राणा ने हराया और नगर निगम के पहले मेयर बनें, बाद में यशपाल राणा भी कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन विकास एक निर्दलीय के रूप में ही करते रहे ।
2019 में हुए चुनाव में भाजपा के मयंक गुप्ता (बनिया) , कांग्रेस के रिशू राणा व बसपा के राजेन्द्र बाड़ी व निर्दलीय प्रत्याशी गौरव गोयल के बीच घमासान में निर्दलीय गौरव गोयल ने बाजी मार ली । इसके कुछ दिन बाद ही गौरव गोयल भाजपा में शामिल हो गये लेकिन ज़्यादा दिनों तक पार्टी दबाव के बोझ को सहन नहीं कर पाये और बीच में ही बोर्ड से इस्तीफ़ा देकर रूडकी वासियो को बेसहारा छोड़ कर चल दिये ।
अब सवाल उठता है कि सभी राष्ट्रीय पार्टियों ने रुड़की की मुख्य जातियों बनिया, पंजाबी, ब्राह्मण, दलित , राणा आदि को प्रत्याशी बनाया लेकिन किसी को भी जिता नहीं सकी वहीं दूसरी ओर इन्हीं जातियों के प्रत्याशी जब भी निर्दलीय चुनाव लड़े तो जीत हासिल की, इसके बाद क्या ये माना जाए कि शिक्षा नगरी रुड़की की जनता का राष्ट्रीय पार्टियों से मोहभंग हो गया है ।
इस आधार पर अगर पिछले 24 वर्षों पर ध्यान देकर निष्कर्ष निकाले तो क्या इस बार भी रुड़की की जनता निर्दलीय प्रत्याशी को जिताने का मन बना चुकी हैं