सर सैयद अहमद ख़ान की यौमे-वफ़ात पर , तालीमी रहनुमा को ख़िराज-ए-अक़ीदत


सर सैयद अहमद ख़ान की यौमे-वफ़ात पर ,तालीमी रहनुमा को ख़िराज-ए-अक़ीदत

अलीगढ़।( मौ. गुलबहार गौरी) 27 मार्च 2025 हिन्दुस्तान के अज़ीम समाजी मुस्लिह, तालीमी रहनुमा और मुफक्किर सर सैयद अहमद ख़ान की यौमे-वफ़ात के मौक़े पर पूरे मुल्क में उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) समेत कई दीनी और दुनियावी तालीमी इदारों में ख़ुसूसी तक़ारीब मुनक्किद की गईं, जिनमें सर सैयद के ख़िदमात को याद किया गया और उनकी तालीमात पर अमल करने की अहमियत पर ज़ोर दिया गया।

सर सैयद अहमद ख़ान: एक मुख़्तसर ताआर्रूफ

सर सैयद अहमद ख़ान का तवल्लुद 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के एक मारूफ़ ख़ानदान में हुआ। वो एक अदीब, तारीख़दान, मुफक्किर और समाजी इस्लाहकार थे, जिन्होंने हिन्दुस्तानी मुसलमानों को जदीद तालीम और साइंस से जोड़ने के लिए ग़ैर-मामूली कोशिशें कीं। 19वीं सदी में जब मुल्क सियासी, समाजी और तालीमी इन्क़िलाब के मरहले से गुज़र रहा था, तब सर सैयद ने क़ौम को जहालत और पसमांदगी से निकालकर इल्म और तरक्की की तरफ़ ले जाने का बेड़ा उठाया।

उनका सबसे बड़ा कारनामा 1875 में “मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज” (एमएओ कॉलेज) की बुनियाद था, जिसे बाद में 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का दर्जा मिला। ये इदारा आगे चलकर मुसलमानों की शैक्षिक और समाजी बेदारी का मरकज़ बना।

सर सैयद ने अपनी किताबों और मज़ामीन के ज़रिए मुस्लिम क़ौम को समझाने की कोशिश की कि इल्म, साइंस और जदीदियत को अपनाए बिना तरक्की मुमकिन नहीं। उन्होंने “तहज़ीब-उल-अख़लाक़” नामी रिसाला शुरू किया, जिससे समाजी इस्लाह की तहरीक तेज़ हुई।

अलीगढ़ में ख़िराज-ए-अक़ीदत की तक़रीब

सर सैयद अहमद ख़ान की पुण्यतिथि के मौक़े पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में एक बड़ी तक़रीब मुनक्किद की गई, जिसकी सदारत यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रो. नईमा ख़ातून ने की। इस मौक़े पर उस्तादों, तालिब-ए-इल्म और आला अफ़सरान ने शिरकत की।

कुलपती प्रो. नईमा ख़ातून ने कहा:

“सर सैयद अहमद ख़ान ने हमेशा तालीम को तरक्की और समाजी इस्लाह का सबसे अहम ज़रिया क़रार दिया। उन्होंने साइंस, मंतिक़ और जदीद तफ़क्कुर को अपनाने पर ज़ोर दिया। हमें उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए और तालीम के ज़रिए समाज को बेदारी की मंज़िल तक पहुंचाना चाहिए।”

इस तक़रीब में तालिब-ए-इल्मों ने सर सैयद अहमद ख़ान की ज़िंदगी, उनके कारनामों और तालीमी ख़िदमात पर रोशनी डाली। यूनिवर्सिटी के मुख़्तलिफ़ होस्टलों और शोबों में ख़ुसूसी मजलिसें मुनक्किद की गईं, जिनमें उनके अफ़कार पर तबादला-ए-ख़याल किया गया।

इसके बाद एएमयू कैंपस में वाक़े सर सैयद की मज़ार पर गुलपोशी की गई, जहां यूनिवर्सिटी के अफ़सरान और तालिब-ए-इल्मों ने दुआएं कीं और उनके मक़ासिद को आगे बढ़ाने का अज़्म किया।

मुल्क भर में सर सैयद की याद में तक़ारीब

अलीगढ़ के अलावा दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, पटना, भोपाल, मुंबई और कोलकाता समेत कई शहरों में सर सैयद अहमद ख़ान को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करने के लिए ख़ुसूसी मजलिसें और सिमिनार मुनक्किद किए गए।

• दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द में सेमिनार हुए, जहां अहले इल्म और तालीमी शख़्सियात ने उनके अफ़कार और कारनामों पर रोशनी डाली।

• लखनऊ में एक ख़ुसूसी मुनाज़रा हुआ, जिसमें मुअर्रिख़ीन और तालीमी माहिरीन ने सर सैयद के समाजी इस्लाह और “तहज़ीब-उल-अख़लाक़” की एहमियत पर बात की।

• हैदराबाद, भोपाल, पटना और कोलकाता में भी संगोष्ठियां, मुबाहसे और ख़िराज-ए-अक़ीदत की तक़ारीब मुनक्किद की गईं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की पहली खातून वाइस चांसलर: प्रो. नईमा ख़ातून

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की तारीख़ में एक नया बाब उस वक़्त जुड़ गया जब प्रो. नईमा ख़ातून को यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर मुक़र्रर किया गया। अप्रैल 2024 में इस ओहदे पर फ़ाइज़ होने के बाद, उन्होंने तालीम और तहक़ीक़ के शोबे में नई इन्क़लाबी तब्दीलियां लाने का अज्म किया।

प्रो. नईमा ख़ातून इससे पहले एएमयू वीमेंस कॉलेज की प्रिंसिपल थीं और नफ़सियात (मनोविज्ञान) शोबे की प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवाएं अंजाम दे चुकी हैं। उनके दौर-ए-क़ियादत में एएमयू ने ख़्वातीन की तालीम, तहक़ीक़ और जदीद तालीमी तर्ज़ पर ख़ास तवज्जो दी।

उनकी तक़र्री से न केवल एएमयू में खवातीन को नई राहें मिलीं, बल्कि ये भी साबित हुआ कि इल्म और क़ियादत में मर्द-ओ-ख़्वातीन की बराबरी आज के दौर की अहम ज़रूरत है।

सर सैयद के पैग़ाम से हमें क्या सीखने की ज़रूरत है?

1. इल्म को तरजीह दें – उन्होंने हमेशा कहा कि इल्म के बग़ैर कोई क़ौम तरक्की नहीं कर सकती।

2. साइंस और टेक्नोलॉजी को अपनाएं – सर सैयद साइंस और तजुर्बाती इल्म को तरक्की की कुंजी समझते थे।

3. समाजी इस्लाह की अहमियत – उन्होंने जहालत और ग़ैर-इल्मी रस्मों को छोड़ने का सबक़ दिया।

4. दीनी और जदीद तालीम का तालमेल – उन्होंने मज़हब और जदीद इल्म को साथ लेकर चलने की बात की।

नतीजा

सर सैयद अहमद ख़ान सिर्फ़ एक तालीमी रहनुमा ही नहीं, बल्कि एक दूरअंदेश क़ायद और समाजी मुसलिह भी थे। उनकी तालीमात आज भी क़ौम के लिए राहनुमा का काम देती हैं।

उनके इस फलसफ़े को अपनाते हुए, हमें तालीम, तहक़ीक़ और समाजी बेदारी की राह पर आगे बढ़ना होगा, ताकि एक रोशन और तरक़्क़ी पसंद समाज क़ायम किया जा सके।


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