कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी: फ़ौज की राह में हिम्मत, हुनर और विरासत का बेहतरीन संगम


कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी: फ़ौज की राह में हिम्मत, हुनर और विरासत का बेहतरीन संगम

देहरादून ।( मौ. गुलबहार गौरी) जब भी भारत की अफ़्वाज में औरतों की कामयाबी की बात होती है, तो कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी का नाम अदब और फ़ख़्र के साथ लिया जाता है। सोफ़िया न सिर्फ़ एक बहादुर फ़ौजी हैं, बल्कि एक ऐसे घराने से ताल्लुक़ रखती हैं जिसकी नस-नस में वतनपरस्ती दौड़ती है। उनका ताल्लुक़ गुजरात के वडोदरा शहर से है, लेकिन उनकी पहचान अब सरहदों से बहुत आगे तक फैल चुकी है।

फ़ौजी ख़ानदान से ताल्लुक़

सोफ़िया क़ुरैशी का पैदाइशी माहौल ही उन्हें फ़ौज की तरफ़ खींच लाया। उनके दादा जनाब उस्मान क़ुरैशी साहब, हिन्दुस्तानी फ़ौज में एक धार्मिक शिक्षक के ओहदे पर रहे। उस दौर में मुसलमान सिपाहियों की रहनुमाई करना, उनकी दीनी ज़रूरतों का ख़्याल रखना और वक़्त-ए-ज़रूरत उन्हें हौसला देना उनका फ़र्ज़ था। यही तालीम और तरबियत उन्होंने अपने बेटे को दी।

सोफ़िया के वालिद,ताज मुहम्मद क़ुरैशी, भी फ़ौज में एक इस्लामिक टीचर के तौर पर शामिल हुए। वो भी अपने वालिद की तरह जज़्बा-ए-ख़िदमत लेकर सेना में दाख़िल हुए थे। ताज मुहम्मद साहब ने अपनी बेटी की परवरिश बहुत ही अनुशासन और उसूलों के साथ की। उनका मानना था कि औरत अगर चाहे तो मर्दों से कंधे से कंधा मिलाकर हर मैदान फ़तह कर सकती है।

इल्म से इज़्ज़त तक का सफ़र

सोफ़िया ने अपनी तालीम बायोकेमिस्ट्री में मास्टर्स डिग्री तक हासिल की। लेकिन उनके दिल में कुछ और ही धड़क रहा था – वर्दी पहनने का ख्वाब। उन्होंने ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (OTA), चेन्नई में दाख़िला लिया और 1999 में भारतीय फ़ौज की सिग्नल कोर में अफ़सर बनीं। वहां से उनका सफ़र शुरू हुआ – एक औरत के लिए, जो नाज़ुक समझी जाती है, लेकिन जिसने साबित किया कि हिम्मत और हिकमत में कोई मर्द-औरत का फ़र्क़ नहीं।

अंतरराष्ट्रीय फ़तह

2006 में, यूनाइटेड नेशन्स के मिशन के तहत कांगो में उन्हें बतौर मिलिट्री ऑब्ज़र्वर तैनात किया गया। उस ज़माने में ये एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी, ख़ासकर एक औरत के लिए। उन्होंने वहां बख़ूबी अपने फ़र्ज़ को अंजाम दिया और अपने अफ़सरान से लेकर साथी मुल्कों के अफ़सरों तक सबको अपना मुरीद बना लिया।

लेकिन असली कामयाबी 2016 में आई, जब उन्हें एक्सरसाइज फोर्स 18 में भारत की तरफ़ से मिलिट्री कंटिंजेंट की कमांडर चुना गया। ये 18 देशों का एक साझा युद्ध अभ्यास था, और वो पूरे एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र की इकलौती महिला कमांडर थीं। ये न सिर्फ़ उनके लिए बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक लम्हा था।

घर और फ़र्ज़ दोनों में कामयाब

सोफ़िया की शादी मेकेनाइज़्ड इन्फ़ेंट्री में सेवारत अफ़सर ताजुद्दीन क़ुरैशी से हुई है। दोनों के दरमियान सिर्फ़ मोहब्बत ही नहीं, बल्कि फ़ौजी जज़्बा और समझदारी की भी एक ख़ास केमिस्ट्री है। उनके एक बेटा भी है, और सोफ़िया एक कामयाब माँ, बीवी और अफ़सर – तीनों रोल बख़ूबी निभा रही हैं।

नतीजा: मिसाल बनी सोफ़िया

कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी की ज़िंदगी एक मिसाल है – उस हर लड़की के लिए जो वर्दी पहनने का ख्वाब देखती है। उनके ख़ानदान की फ़ौजी विरासत ने उन्हें रास्ता दिखाया, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत से उस रास्ते को रोशन किया।

वो एक ऐसी औरत हैं जिसने अपने दादा उस्मान साहब और वालिद ताज मुहम्मद साहब की इज़्ज़त को और ऊँचा किया। और आज, उनका नाम हिन्दुस्तानी फ़ौज की तारीख़ में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।


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